कब ये चाहा है तुमसे मुझे प्यार दो,
कब ये चाहा है तुम मुझको अधिकार दो ।
मैं तुम्हारे लिए तो कोई भी नहीं,
क्या असर मुझको तुम चाहे प्रतिकार दो॥
कोई आंधी अविश्वास की जो चले,
दिल तो तिनके के घर हैं उजड़ जायेगे।
रूठना और मनाना तो चलता रहे,
मेरी चाहत को पर यूँ न इनकार दो ॥
तुमसे मांगू भी क्या कोई चाहत नहीं,
तुमसे मिलने की भी कोई हसरत नहीं ।
राम मूरत हैं जिनमे है सूरत तेरी,
इस से ज्यादा क्या चाहूँ की दीदार दो॥
रख लो दुनिया के ये सारे नाते सभी ,
सारी बातें वफ़ा के इरादे सभी ।
तेरी चाहत की ज्योति से रोशन है दिल,
फिर भले अब जुदाई के अंगार दो ॥
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