दिन रात बरसे बादल बिखरे जहाँ में खुश्बू ।
इतनी खुदा ने बख्शी बहारों को ख्वाहिशें ॥
छूकर लबों को उसके ही इश्क़ निखरता है ।
छूकर उसी को निखरी निखारो की ख्वाहिशें ॥
महफ़िल में मुझको आकर इस तरह छेड़ती है ।
नज़रों ने दी हैं उनके इशारों को ख्वाहिशें ॥
चेहरे में उसके चन्दा के नूर की झलक है ।
आँखों में चमकती हैं सितारों की ख्वाहिशें ॥
मिलने से बेग़रज़ हैं और दूर भी नहीं।
इतनी अता हुई हैं किनारों को ख्वाहिशें ॥
वो जान मांगते हैं जिनको दिल ये दे दिया ।
मौला मेरे अजब दी हमारों को ख्वाहिशें ॥
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