मन के भाव, शिकवे और मुहब्बत के अनेक रंग मिलकर एक नये कलेवर की रचना करते है, जिन्हें मैं जज़्बात के नाम से जानती हूँ |इन्ही जज्बातों को समेटे आपसे रू-ब-रू हूँ |
मंगलवार, 3 दिसंबर 2013
तेरा इक इक शब्द बन उठा है सोलह सिंगार मेरा, तेरी बातें बन जाती हैं प्रिय जीवन आधार मेरा॥ तुम कह दो मैं बंजर धरती तुम दो मैं गंगा जल, तेरे ही हाथों में संवरा है जीवन आकार मेरा ॥
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