बुधवार, 2 अप्रैल 2014


अभी कैसे कहूँ कि वो मेरा परवाना है |
मेरी गलियों में महज़ जिसका आना जाना है|

न जाने क्यूँ ये जगह और भी अपनी सी लगी|
इसीशहर में सुना है तेरा ठिकाना है|

ये राहें उँगलियाँ पकडे मुझे किस ओर ले जाती |
कदम ये जानते हैं क्या कि तेरी ओर आना है |

मुझे तुम लाख रोको अपने दिल के पास आने से|
मेरी चाहत कि किताबों का तू फ़साना है |

सनम कातिल नज़र पे मालिकाना हक़ तुम्हारा है|
चलाओ तीर नज़रों के मेरा भी दिल निशाना है |

अदावत है ज़माने से तुझे लेकर के जन्मों से |
खुदाई हार जायेगी हमारा दिल दीवाना है |

मुहब्बत का सफ़र ऐसे ही भला खत्म कैसे हो|
अभी तो देखना छूना है गले भी लगाना है |