इस सम्त मोहब्बत से कोई वास्ता तो हो ।
अब मुस्कुरा दे वो यूँ कोई हादसा तो हो॥
वो लौट न पाया अगर उसका कुसूर क्या।
परदेस से आने का कोई रास्ता तो हो॥
वो देखे मुस्कुराये कोई बात तो करे।
इस दिल को लगाने का कोई सिलसिला तो हो॥
न नज्र मुलाकात न ही ख़त कोई लिक्खे।
दोनों के दरमयान कोई फासला तो हो॥
मैं बुत का क्या करूँ कि अकीदत ही तुझसे है।
मानिंद सताइश का कोई काफिला तो हो॥
अफ्शा-इ-राजे-इश्क़ भी मुमकिन ही था "ग़ज़ल"।
उफ़तादगी से अपना कोई राब्ता तो हो ॥