सोमवार, 8 जुलाई 2013

ये एक कहानी है।

थम जाओ मेरे जानिब इक बात बतानी है,
आंखों मे तेरी सूरत होंठों पे कहानी है।

बे ज़बां हैं नज़रें तो रूह भी सरकश है,
एह्सास से आरी हुं ये कैसी जवानी है।

इस दर्ज़ा सुलगती हैं सांसें तमाम रातें,
क्या है यही वो वह्शत क्या ये ही रवानी है।

चूड़ी का एक टुकड़ा सूखा हुआ सा पत्ता,
इस सम्त मुहब्बत की बस ये ही निशानी है।

तुमने  भी सुन रखे हैं ये राज़  तो नहीं हैं,
जो कह रही हूं तुमसे ये बात पुरानी है।

कैसी है गर्ज़-ए-चाहत हम पा-ए-यार बैठे,
हसता वो बेतहाशा मेरी आंख मे पानी है। 

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

बिसात-ए-इश्क पे कुर्बान है इक और कहानी ।


बहुत ख़ामोश है कल से मुहब्बत की रवानी भी,
बहुत चुभती हैं ये रातें मुसलसल आँख में पानी । 

जुदाई की वो शब थी और दिल मजरूह था मेरा,
तड़पता  जिस्म था मेरा ही और थी रूह बेगानी । 

मुसलसल हिज्र की रातें बयां करते नहीं बनती ,
मेरा आगाज़ था बा-खैर और अंजाम तूफानी । 

हयाते आरज़ू से मैंने  भी माँगा कज़ा का दिन,
बिसात-ए-इश्क पे कुर्बान है इक और कहानी ।