मन के भाव, शिकवे और मुहब्बत के अनेक रंग मिलकर एक नये कलेवर की रचना करते है, जिन्हें मैं जज़्बात के नाम से जानती हूँ |इन्ही जज्बातों को समेटे आपसे रू-ब-रू हूँ |
मंगलवार, 21 मई 2013
शनिवार, 18 मई 2013
तो बात थी
हम भी मोहब्बतों में सँभलते तो बात थी ,
लम्हे जईफ दिल से निकलते तो बात थी |
सूरज थे हम तो कोई भी नज़दीक न हुआ ,
शम्मा की तरह हौले से जलते तो बात थी |
शीशों ने तो कहा था की खूबसूरत हो,
गजलों की लय में हम भी संवरते तो बात थी |
हम शाहराह में खड़े नाबीना ही तो थे ,
तुम दो कदम ही साथ में चलते तो बात थी |
इक पल भी सोचने की मोहलत नहीं मिली ,
वो दूसरे पल में भी बदलते तो बात थी |
लम्हे जईफ दिल से निकलते तो बात थी |
सूरज थे हम तो कोई भी नज़दीक न हुआ ,
शम्मा की तरह हौले से जलते तो बात थी |
शीशों ने तो कहा था की खूबसूरत हो,
गजलों की लय में हम भी संवरते तो बात थी |
हम शाहराह में खड़े नाबीना ही तो थे ,
तुम दो कदम ही साथ में चलते तो बात थी |
इक पल भी सोचने की मोहलत नहीं मिली ,
वो दूसरे पल में भी बदलते तो बात थी |
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